मित्रो! मैं सीता जी को वापस लाने वालों की बात कह रहा था। आप देखिए कि उन्हें किस तरह से सहायता मिलती चली गयी। क्यों साहब! पानी के ऊपर तैरते हुए पत्थर कहीं होते हैं? कहीं नहीं होते। पानी में डालते ही पत्थर डूब जाता है। पत्थरों के माध्यम से भगवान् ने सहायता की थी। ऐसे पुल बनाये गये थे, जिसमें कि खम्भे नहीं लगाये गये थे। इसके लिए कोई प्लानिंग नहीं की गयी थी। समुद्र के ऊपर पत्थर फेंकते ही वे तैरने लगे और पुल बना दिया गया। अचम्भे की बात है न? लोगों की समझ में नहीं आती। बेटे, यह समझ में आयेगी भी नहीं। मैं ऐसे लाखों उदाहरण बता सकता हूँ, जिसमें कि
पत्थर ऊँचे उद्देश्यों के लिए तैरे हैं। जो ऊँचा उद्देश्य लेकर के चले हैं और जान हथेली पर लेकर चले हैं और ईमानदारी से चले हैं, उनके पत्थर तैरे थे और फिर तैरेंगे। नहीं साहब! पत्थर नहीं तैरेगा। हाँ बेटे! पत्थर नहीं तैरेगा। यह अलंकार है। इसका मतलब यह है कि साधन कम हो, सामर्थ्य कम हो, तो भी सफलता मिलेगी।
महाराज जी! और क्या हो सकता है? और बेटे, समुद्र को छलाँगा जा सकता है। आदमी की छलाँगने की ताकत दस फुट हो सकती है, बारह फुट हो सकती है, पन्द्रह फुट हो सकती है। बन्दर के छलाँगने की ताकत, लंगूर के छलाँगने की ताकत मान लें कि ज्यादा से ज्यादा पच्चीस फुट हो सकती है। तीस फुट हो सकती है, चालीस फुट हो सकती है और ज्यादा से ज्यादा पचास फुट हो सकती है। नहीं साहब! बन्दर इतनी लम्बी छलाँग नहीं मार सकता। तो बेटे, बन्दरों ने समुद्र छलाँगा था? अच्छा, आदमी कितना वजन उठा सकता है? बीस किलो उठा सकता है। नहीं साहब! चालीस किलो उठा सकता है। नहीं साहब! हमने एक पल्लेदार को अपनी पीठ पर एक क्विंटल की बोरी लादते हुए देखा था। चलिए हम आपकी बात मान लेते हैं कि आदमी एक क्विंटल वजन उठा सकता है। तो क्या वह पहाड़ भी उठा लेगा? नहीं साहब! पहाड़ तो नहीं उठा सकता। पहाड़ नहीं उठा सकता, तो देख हनुमान् जी ने ऊँचे उद्देश्य के लिए पहाड़ उठाया था कि नहीं। ऊँचे उद्देश्य के लिए जब आदमी कमर कसकर खड़े हो गये हैं, तो उन्होंने बड़े से बड़ा काम करके दिखाया है। हनुमान् जी ने सीता जी को वापस लाकर दिखाया था।
क्या इतिहास की पुनरावृत्ति फिर होना सम्भव है? हाँ, इतिहास की पुनरावृत्ति होना सम्भव है और हम करके दिखायेंगे। मित्रो! संस्कृति की सीता को, जिसके बारे में पहले यह मालूम पड़ता था कि उन्हें वनवास हो गया और वह रावण के घर में कैद हो गयी। अब वहाँ से उनके लौटने की कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन रामचन्द्र जी रीछ वानरों के साथ मिलकर उन्हें वापस लाने में समर्थ हुए थे।
मित्रो ! हम भी संस्कृति की सीता को लौटाकर ले आयेंगे। क्यों? क्योंकि उससे सारी मनुष्य जाति का भविष्य और भाग्य जुड़ा हुआ है। उससे विश्वशान्ति जुड़ी हुई है। उससे हमारी पीढ़ियों का और औलादों का भविष्य जुड़ा हुआ है। जिस सुन्दर दुनिया को भगवान् ने बड़ी शान से बनाया है, वह उसकी इच्छा पर टिकी हुई है और उसी से हमारे इनसानी जीवन की सार्थकता टिकी हुई है। इनसान के जीवन के लिए सार्थकता की दृष्टि से जो काम सुपुर्द किए गये हैं, उन्हें भी हम कर सकते हैं। इन सब बातों की वजह से संस्कृति की सीता को वापस लाने का आज हमारा काम है और आप सबको इसी योजना में सम्मिलित होने के लिए बुलाया है। बस, हमारा यही एक मकसद है, दूसरा कोई नहीं है। आइये, आप और हम मिलकर संस्कृति की सीता को वापस लाने की कोशिश करें।