स्वच्छता मनुष्यता का गौरव

मल एक सुन्दर खाद

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भारतवर्ष में कृषि के लिए खाद का प्रमुख स्त्रोत जानवर हैं। जानवरों के गोबर का भी ५० प्रतिशत भाग तो ईंधन के रुप में फूँक दिया जाता है और मूत्र को इकट्ठा करने की व्यवस्था न होने से वह भी प्रायः बेकार चला जाता है। देश की जनसंख्या बढ़ेगी और मशीनों का बाहुल्य होगा तो जानवरों की संख्या पर निश्चित रुप से असर पड़ेगा, वे क्रमशः कम होते जायेंगे। इससे खेती के लिए खाद की समस्या भी बढ़ेगी। इसका कोई खास हल अभी से किया जाना चाहिए, अन्यथा खाद्य की प्रचण्ड समस्या को हल करना और भी कठिन हो जायेगा।
    पाश्चात्य जगत के इंग्लैण्ड, नार्वे, स्वीडन आदि देशों में मनुष्य के मल-मूत्र को खाद के रुप में प्रयुक्त किये जाने के सफल प्रयोग हुए हैं। १९४४ में डॉक्टर रिचर्डसन ने जो ६ वर्ष तक चीन में रहे और कृषि सम्बन्धी अनुसन्धान किये, भारत में अपने एक व्याख्यान में बताया कि चीन ने अपनी जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाई है, इसमें गोबर की खाद का उतना महत्व नहीं जितना उन्होंने मनुष्य के मैले का उपयोग किया है। उन्होंने कहा-‘‘यदि चीन आदमी के मैले का उपयोग नहीं करता तो वह इतनी बड़ी आबादी को जीवित भी नहीं रख सकता था।’’ ‘‘चालीसवीं सदी के किसान’’ नामक पुस्तक के रचयिता मिस्टर किंग ने भी चीनी, कोरियन तथा जापानियों द्वारा मल-मूत्र का प्रयोग कर कृषि की उपज बढ़ाने का उल्लेख किया है। मिस्टर किंग अपने समय के विश्व विख्यात कृषि विशेषज्ञ माने जाते थे।
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