मनुष्य में देवत्व का उदय व धरती पर स्वर्ग अवतरण

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ, - ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। देवियो ! भाईयों !! देवताओं के अनुग्रह की बात आप सबने सुनी होगी। देवता नाम ही इसलिए रखा गया है कि, वे दिया करते हैं। प्राप्त नाम ही इसलिए रखा गया हैं, प्राप्त करने की इच्छा से कितने ही लोग उनकी पूजा करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं, आइए- इस पर विचार करें। देवता देते तो हैं, इसमें कोई शक नहीं है। अगर वे देते न होते तो उनका नाम देवता न रखा गया होता। देवता का अर्थ ही होता है- देने वाला। देने वाले से अगर माँगने वाला कुछ माँगता है तो कोई बेजा नहीं है। पर विचार करना पड़ेगा कि, आखिर देवता देते क्या चीज है? देवता वही चीज देते है जो उनके पास है। जिसके पास जो चीज होगी, वही तो दे पाएगा। देवता के पास सिर्फ एक चीज है और उसका नाम है- देवत्व। देवत्व कहते हैं- गुण, कर्म और स्वभाव- तीनों की अच्छाई को, श्रेष्ठता को। इतना देने के बाद में देवता निश्चिन्त हो जाते हैं, निवृत हो जाते हैं और कहते हैं कि, जो हम आपको दे सकते थे हमने वह दे दिया।

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