यह जमशेदपुर की कहानी है। सन् १९६९ई. में वर्मा माइन्स में महायज्ञ का आयोजन किया गया था। निर्धारित तिथि को पूज्य गुरुदेव का आगमन हुआ। उन्हें टाटा कम्पनी के भव्य गेस्ट हाउस में ठहराया गया। रात्रि विश्राम से पहले पूज्य गुरुदेव ने वाचमैन से कहा- मथुरा से एक पण्डित जी रात के डेढ़- दो बजे आने वाले हैं। लीलापत नाम है उनका। उन्हें मेरे पास ही ठहरा देना।
उस वाचमैन की ड्यूटी बदल गई थी और वह साथी वाचमैन को लीलापत जी के बारे में बताना भूल गया था। लीलापत जी पहुँचे। बोले- पूज्य गुरुदेव जहाँ हैं, मुझे वहीं ठहराया जाए। वाचमैन ने कहा- आपकी व्यवस्था कहीं और की गई है, मैं आपको वहीं ले चलता हूँ। पण्डित जी को बात पसंद नहीं आई। उन्होंने कहा- सत्यानन्द या गायत्री का घर जानते हो? मुझे वहीं ले चलो।
लड़का उन्हें मेरे घर ले आया। लीलापत जी के घर पर आने से हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आनन- फानन में उनके विश्राम की व्यवस्था की गई।
लीलापत जी बिस्तर पर लेटे ही थे कि एक बार फिर दरवाजा खटखटाया गया। दरवाजा खोलते ही मैंने देखा- सामने पूज्य गुरुदेव खड़े हैं, एक हाथ में लोहे की पेटी लेकर। साथ में एक लड़का सिर पर बेडिंग लिए खड़ा था। एक- एक घर के सभी लोग दरवाजे पर आ गये। हम सब- की हालत ठीक वैसी ही थी, जैसी भगवान श्रीकृष्ण के पहुँचने पर विदुर की हुई होगी। हमने सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि पूज्य गुरुदेव के चरण हमारे घर पर पड़ेंगे। गायत्री दीदी तो इतना विभोर हो गई थीं कि उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े। उन्होंने कहा- हमारे घर का तो कोना- कोना अपवित्र है, गुरुदेव! आप यहाँ कैसे आ गए?
दीदी की बात सुनकर गुरुदेव मुस्कराते हुए अन्दर आए। एक- एक कर हर कमरे में जाकर बैठे और बोलते गए- लो, तुम्हारा घर पवित्र हो गया। सुबह होते- होते श्री रमेश चन्द्र शुक्ला तथा श्री हेमानन्द जी भी पूरे कुनबे के साथ आ गए। घर पर उत्सव जैसा माहौल बन गया।
सबके लिए खीर बनाकर परोसी गई। पहले गुरुदेव ने चखा, फिर शुक्ला जी ने चखते ही अजीब- सा मुँह बनाया। हम शंकित हुए। अचानक दीदी को याद आया कि डालडा के उस डिब्बे में नमक रखा था और उन्होंने अतिउत्साह में खीर में चीनी की जगह नमक डाल दिया था। उनके उड़ें हुए चेहरे को देखकर गुरुदेव ने पूछा- क्या बात है? दीदी ने अटकते हुए कहा- खीर में नमक....। गुरुदेव बोले- बेटी, कहाँ है नमक? ठीक तो है। तुम लोग भी चख कर देखो। एक- एक कर सबने खीर चखी। ...और आश्चर्य खीर में माँ जगदम्बा को अर्पित किए गए भोग जैसा अलौकिक स्वाद था।
प्रस्तुतिः भास्कर प्रसाद सिन्हा,
पूर्वजोन, शांतिकुंज, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)