स्वामी विवेकानंद

भारत में स्वागत

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जिस समय से भारतवर्ष में यह समाचार फैला कि स्वामी विवेकानन्द योरोप से भारत के लिए रवाना हो गए तो नगर- नगर में उनके स्वागत और सम्मान के लिए तैयारी की जाने लगी। यहाँ जो लोग चार वर्ष से पश्चिमी देशों में स्वामीजी द्वारा हिंदू- सिद्धांतों के प्रचार के समाचार पढ़ते रहे थे, उनको ऐसा आभास हो रहा था मानो पूर्व युग के किसी महान आचार्य ने ही सनातन धर्म के पुनरुद्धार और संसार में उनकी विजय पताका फहराने के लिए फिर से जन्म लिया है।

जैसे ही स्वामीजी का जहाज कोलम्बो में पहुँचा एक बड़े जन- समूह ने बंदरगाह पर ही उनका स्वागत किया। २- ३ दिन विभिन्न संस्थाओं की तरफ से उनका स्वागत होता रहा। वहाँ से जब वे राजेश्वर के पास रामानंद पहुँचे तो वहाँ के राजा स्वामीजी को एक गाड़ी में बैठाकर अन्य लोगों के साथ स्वयं खींचकर ले गए। उन्होंने इस घटना के स्मरणार्थ समुद्र के किनारे एक ४० फीट ऊँचा कीर्ति स्तंभ बनवाया जिस पर निम्न लेख लिखा गया।

                                                           ॥ सत्यमेव जयते॥

‘‘पश्चिमी गोलाद्र्ध में वेदांत धर्म का परोपकारी प्रचार कार्य, ज्वलंत और अपूर्व विजय प्राप्त करके, अपने अंग्रेज शिष्यों सहित परमपूजनीय स्वामी विवेकानन्द ने अपने पवित्र चरणों से सर्वप्रथम जहाँ भारतभूमि को स्पर्श किया, उसी के स्मरण में रामानंद के राजा भास्कर सेतुपति ने यह कीर्ति स्तंभ खड़ा कराया।’’

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