जगदगुरु शंकराचार्य

साधना और विद्याध्ययन

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
राजा ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया। शंकराचार्य सादर विदा हुए। नर्मदा तट पर स्वामी गोविंद भगवत्पाद का आश्रम था, वहाँ रहकर औरभगवान् भगवत्पादसे दीक्षा लेकर शंकराचार्य ने वेदशास्त्रो का गहन अध्ययन कर अपने ज्ञान को परिपक्व किया। उतनी ही उन्होने साधना भी की, जिससे उनकी आत्म शक्तियाँ विकसित और प्रखर- प्रकीर्ण हो उठीं।

शिष्यों की श्रद्धा, लगन, तत्परता,अनुशासन और सेवाभावना के अनुरूप ही गुरूजनों का स्नेह- आशीर्वाद मिला करता है। शंकराचार्य ने शिष्य की आध्यात्मिक परंपरा को पूर्ण भावना के साथ निभाया,उसके फलस्वरूप ही गोविंद स्वामींने भी अपने पास जो कुछ भी तप, ज्ञान और साधना की संचित पूँजी थी,उसे लोक कल्याणाथ्र उन पर उड़ेल दिया। दन्होंने शंकराचार्य को अद्वैतवाद का गंभीर अध्ययन कराया। वेददांत के कुछ अंश बाद में उन्होंने गुरूदेव की आज्ञा से काशी में जाकर पढ़े। इस तरह उन्होंने सर्वप्रथम अपने आपको ज्ञान और तप की शक्तिसे निष्णात बना लिया। इस साधना ने ही श्संकराचार्य को सामान्य- जन से जगद्गुरू की गौरवशाली भुमिका में पहुँचा दिया।

उनका प्रथम प्रवचन अद्वैत और वेदांत पर वाराणसी में हुआ। एक विशाल जन- समुदाय को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा -‘‘वेदांत विशुद्ध रूप से मनुष्य की आत्मा के आध्यात्मिक उत्थान की प्रशसित करता है। वह व्यक्तियों के बीच बिलगाव की नहीं- प्रम, दया, करूणा, उदारता, तप, त्याग, सेवा, संगठनशक्ति संवर्द्धन और निष्काम भावना से धर्म कर्तव्यों के पालन की शिक्षा देता है। हम लोग क्रिया परक अध्यातम को भुलकर कामना- मूलक अध्यात्म की ओर खिंच गये हैं। धर्म के नाम पर वर्ग, संप्रदाय और विभिन्न मत खड़े किए गए हैं। हिंदू-जाति के पतन का यही कारण हैं।आत्म- कल्याण और विश्व के आध्यात्मिक पुनरूत्था के लिए हमें उन मानवीय गुणों पर ही लौटना पड़ेगा, जिसमें चींटी से लेकर हाथी तक को अपने अस्तित्व के सुरक्षा का अधिकार है।’’

जगद्गुरू शुकराचार्य के भाषण से जनता की श्रद्धा उन पर उमड़ पड़ी। गुरूदेव ने शिष्य को हृदय से लगा लिया और आशीर्वाद दिया-वत्स! जाओ, अब तुम सारे वेदांत का प्रचार करो। देश की वर्तमान दलित परिस्थितियों को विगलित कर नये अध्यात्म का पावन प्रकाश करो।’

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118