अध्यात्म ने विज्ञान के आक्षेपों का प्रामाणिक स्तर पर उत्तर नहीं दिया। खीज कर उसे गाली- गलौज देना आरम्भ कर दिया और अपनी स्वप्निल दुनियाँ अलग बसा ली। इससे बुद्धिजीवी वर्ग पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा और उसे पराजित की खीज, मूढ़ मान्यता का समर्थन तथा निहित स्वार्थों का कुचक्र ठहरा कर भर्त्सना का भाजन बनाया। इस प्रकार अध्यात्म की व्यक्ति को उत्कृष्ट और समाज को समृद्ध बनाने की भौतिक क्षमता को भारी आघात लगा। अध्यात्म और विज्ञान के विग्रह असहयोग से समूची मानवता को भारी क्षति पहुँची है। व्यक्ति का पतन हुआ और समाज का संतुलन बिगड़ा। दर्शन क्षेत्र की इस विसंगति का जनजीवन पर, लोक व्यवस्था पर जो घातक प्रभाव पड़ा है, उसे सूक्ष्मदर्शी जानते हैं। उनकी चिन्ता और बेचैनी स्वाभाविक है।
समय की मांग है कि विज्ञान और अध्यात्म का, पदार्थ और चेतना का ऐसा तालमेल बैठे जिसके सहारे व्यक्ति की गरिमा और समाज की व्यवस्था को उच्चस्तरीय बनाया जाना सम्भव हो सके। इस प्रयोजन की पुर्ति के लिए ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान ने दोनों महाशक्तियों को एक दूसरे के पूरक बनकर रहने और मिलजुलकर सर्वतोमुखी प्रगति के लिए नये सिरे से काम करने हेतु सहमत करने का प्रयत्न आरम्भ किया है। इसे पौराणिक काल के समुद्र मंथन से उपमा दी जा सकती है। जिसमें विज्ञान के दैत्य और अध्यात्म के देव ने सहयोग पूर्वक पुरुषार्थ किया था और चौदह बहुमूल्य रत्न निकाले थे। समय उस प्रक्रिया की पुनरावृत्ति चाहता है। ब्रह्मवर्चस ने उसे आरम्भ भी कर दिया है।
काम कठिन है, सरल नहीं। इसके लिए आधुनिक अन्वेषणों के प्रकाश में उन सभी मान्यताओं की पुष्टि की जाती है, जिन्हें अभी तक ऋषि वाक्य कहकर श्रद्धा के साथ स्वीकारा जाता रहा है। उसके लिए ब्रह्मवर्चस ने चिरपुरातन आर्ष ग्रन्थों, दर्शन के प्रतिपादनों एवं आधुनिक वैज्ञानिक मान्यताओं से भरे पूरे एक बृहद् ग्रंथागार की कल्पना की एवं उसे साकार रूप दिया है। विज्ञान व अध्यात्म क्षेत्र के विश्वभर की सभी मान्यता प्राप्त पत्रिकाएँ तथा चुने हुए शोध ग्रन्थ यहाँ संग्रहीत हैं। मनीषी गण निरन्तर उस साहित्य का मनन- चिन्तन कर विज्ञान को अध्यात्म परक एवं अध्यात्म को विज्ञान सम्मत सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।
अध्यात्म तत्त्वदर्शन, भावनात्मक प्रतिपादन, व्यवहार गत आदर्शवाद अनुशासन कपोल कल्पित नहीं वरन् उसके पीछे तर्क, तथ्य, प्रमाण, उदाहरण ही नहीं भौतिक विज्ञान का भरपूर समावेश भी विद्यमान है, यह सिद्ध किये बिना वर्तमान बुद्धिवाद की खोई आस्थाओं को लौटाना इन दिनों संभव नही रहा। शास्त्र कथन और आप्तवचन अब उतने मान्य नहीं रहे जितने कभी थे। ऐसी दशा में यदि असमंजस ग्रस्त होकर बैठा रहा जाय, तो इसकी परिणति भयावह होगी। अध्यात्म दर्शन पर से आस्था चली जाने के उपरान्त किसी को नीति, धर्म, कर्तव्य, सदाचार, परमार्थ के लिए व्रतशील नहीं रखा जा सकता। वह मर्यादा गयी तो मनुष्य की चतुतता और समर्थता ऐसे विग्रह खड़े करेगी, जो इस धरती पर अराजकता, उच्छ्रंखलता, कुटिलता, दुष्टता के अतिरिक्त और कुछ ऐसा शेष नहीं रहने देगी जिसका उत्कृष्टता, आदर्शवादिता, उदारता, संयमशीलता आदि नामों से परिचय दिया जा सके।
तथ्यों को, विग्रहों को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि उत्कृष्टता के ऋषि प्रणीत प्रतिपादनों को तर्क, तथ्य, प्रमाण और विज्ञान की कसौटी पर खरा सिद्ध करके नैतिक अराजकता की आग में झुलसने से समय रहते मानवी गरिमा को बचा लिया जाय। ब्रह्मवर्चस के प्रयोग परीक्षण, अन्वेषण, अनुसंधान इस दिशा में असाधारण प्रयत्न कर रहे हैं। उसकी आधुनिक उपकरणों से सुसम्पन्न प्रयोगशाला है। साथ ही अन्वेषण के लिए बहुमूल्य ग्रन्थों का पुस्तक भंडार। स्नातकोत्तर स्तर के दर्जनों शोधकर्ता निर्धारित लक्ष्य में इस विश्वास के साथ संलग्र हैं कि मानवी गरिमा की पक्षधर उत्कृष्टता को हर कसौटी पर खरी सिद्ध कर सकना अगले ही दिनों संभव हो जायेगा। इसके लिए अति महत्वपूर्ण सूत्र और आधार हस्तगत भी हो रहे हैं, जिन्हें देखते हुये लक्ष्य तक पहुँचने के विश्वास में कोई व्यवधान शेष न रहने की आशा प्रबलतम होती जा रही है।
मानव शरीर और मस्तिष्क ऐसे प्रकृति विनिर्मित यंत्र हैं, जिनमें मनुष्यकृत समस्त उपकरणों की क्षमता विद्यमान है। सूक्ष्म शरीर की इतनी रहस्यमय परतें हैं जिनके साथ तारतम्य बिठाते हुए प्रकृति के समस्त रहस्यों को समझने तथा शक्तियों को उपयुक्त मात्रा में उपलब्ध करने का सुयोग बैठ सके। यह पर्यवेक्षण जिन साधनाओं के आधार पर किया जा सकता है, उनका सही रूप में प्रयोग पर्यवेक्षण करने का प्रयास ब्रह्मवर्चस की शोध प्रक्रिया के अन्तर्गत चल रहा है। षटचक्र, पंचकोश, ग्रन्थि समुच्चय, उपत्यिकायें, दिव्य नाड़ियों, प्राण प्रवाह, सहस्रार, मूलाधार, सुषुम्ना, कुण्डलिनी केन्द्र आदि कितने अदृश्य भाण्डागार ऐसे हैं, जिनका आभास अनुभव एवं अभ्यास होने पर साधारण मनुष्य असाधारण विभूतियों एवं चमत्कारी अतीन्द्रिय क्षमताओं का धनी बन सकता है। इस संदर्भ में ब्रह्मवर्चस के प्रयोग परीक्षण उत्साहवर्धक स्तर तक आगे बढ़ चले हैं।
शांतिकुंज में चल रहे कल्प साधना सत्रों में कितने ही साधक आते हैं। उन्हें उनकी स्थिति एवं आवश्यकताओं के अनुरूप साधना कराई जाती है और देखा जाता है कि उस क्रिया का क्या परिणाम निकला। अब तक के प्रयोग में जिन साधकों को सम्मिलित किया गया, उनके द्वारा देखे गये परिणामों के आधार पर यह विश्वास जमा है कि शारीरिक स्वस्थता, बौद्धिक प्रखरता, भाव संवेदना, ओजस् तेजस् वर्चस् की अभिवृद्धि में यह प्रयोग अगले दिनों और भी अधिक सहायक सिद्ध होंगे। विभिन्न प्रकार की दुर्बलतायें, रुग्णतायें कुत्सायें, कुण्ठायें निवृत्त करने, बलिष्ठताएँ, विशेषताएँ, प्रतिभाएँ, विकसित करने में साधनात्मक प्रयोगों का उत्साहवर्धक प्रतिफल उपलब्ध होता है।
देव संस्कृति के दो प्रमुख आधार है। एक गायत्री, दूसरा यज्ञ। गायत्री महाविद्या और शब्द विज्ञान मन्त्र विज्ञान परस्पर गुंथी विधाएँ हैं। मन्त्र विद्या में शब्द शक्ति के आधार पर उद्भूत प्राण ऊर्जा का प्रयोग होता है। परब्रह्म को शब्दब्रह्म एवं नादब्रह्म भी कहा गया है। गायत्री का शब्द गुँथन एवं उपासना विधान इसी पर आधारित है। मन्त्र विद्या से व्यक्ति विशेष की क्षमता का उभार दूसरों पर उसका उपयोगी प्रयोग एवं वातावरण पर उसका प्रभाव किस तरह होता है। गायत्री के सम्बन्ध में प्रचलित मान्यतायें परीक्षण की कसौटी पर कितनी खरी- खोटी सिद्ध होती हैं, इसकी खोजबीन गम्भीरता पूर्वक की जा रही है और पाया जा रहा है कि इन 24 अक्षरों के गुंथन में से सूक्ष्म शरीर की रहस्यमय परतों को उभारने की विशिष्ट क्षमता विद्यमान है। अगले दिनों इस संदर्भ में अधिक मूल्यवान तथ्य हाथ लगने की सम्भावना है।
अग्रिहोत्र के लाभ शास्त्रकारों ने शारीरिक रोगों के निवारण मानसिक विकृतियों के निराकरण के रूप में बताये हैं। शास्त्रीय प्रतिपादनों के आधार पर यह खोजा जा रहा है- क्या अग्रिहोत्र का उपयोग आधि व्याधियों का निवारण कर सकने वाली चिकित्सा पद्धति के रूप में हो सकता है? आशा बँध चली है कि अग्रिहोत्र चिकित्सा जब अपने समग्र रूप में प्रस्तुत होगी, तो उसका महत्व वर्तमान किसी भी चिकित्सा पद्धति से कम न रहेगा। वह बिना किसी प्रकार की हानि पहुँचाये, जीवनी शक्ति और प्रखरता का अभिवर्धन करते हुए शारीरिक, मानसिक स्वास्थ सुधारने की उपयोगी भूमिका निभा सकेगी।
इस प्रयोजन के लिए एक ऐसा जड़ी- बूटी उद्यान शांतिकुँज में लगाया गया है, जिसमें यज्ञोपैथी में प्रयुक्त होने वाली औषधियाँ अपने यहाँ ही उगाई जा सकें । इनके गुण धर्म नये सिरे से जानने के लिए एक समर्थ वनौषधि विश्लेषण एवं अनुसंधान कक्ष बनाया गया है। चिकित्सा की दृष्टि से जड़ी- बूटी का एकौषधि प्रयोग किस रोग में किस प्रकार कारगर हो सकता है, इसकी अतिरिक्त खोजबीन भी साथ- साथ चल रही है।
यज्ञ के अन्यान्य लाभ भी हैं। अन्तरिक्ष से धरती तक प्राण पर्जन्य की वर्षा होने पर प्राणियों तथा वनस्पतियों की परिपुष्टता बढ़ सकना एक विशेष प्रयोग है। बढ़ते हुए वायु प्रदूषण एवं खाद्य प्रदूषण का निराकरण भी यज्ञ उपचार से संभव है। इसके अतिरिक्त यज्ञ ऊर्जा व्यक्तित्व निखारने में कषाय कल्मषों को दूर करके पवित्रता, प्रखरता बढ़ाने में भी काम आती है। इसकी दार्शनिक शोध भी इन दिनों साथ- साथ चलती रहती है।
अन्तर्ग्रही तरगें पृथ्वी के वातावरण, प्राण परिकर एवं वनस्पति जगत को, विशेषतया मनुष्य को किस प्रकार किस हद तक प्रभावित करती हैं, इसकी असमंजस भरी मान्यतायें ज्योतिर्विज्ञान के आधार पर प्रचलित हैं। उस विधान का वर्तमान गणित क्रम भी संदिग्ध स्थिति में है। प्रभाव परिणामों के संबंध में भी अटकलें ही काम देती है। यह दुर्भाग्य की बात है कि इतना महत्त्वपूर्ण मनुष्य जीवन के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करने वाला विज्ञान इस बुद्धि युग में भी ऐसी अस्त- व्यस्त स्थिति में पड़ा हुआ है। ब्रह्मवर्चस के अन्तर्गत पुरातन स्तर की सारे आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित वेधशाला खड़ी की गयी है। उसके सहारे प्रधानतया सौरमंडल के ग्रह उपग्रहों की यथार्थ स्थिति को जाना जाता है, ताकि उस आधार पर यह अनुमान लगाया जा सके कि इस स्थिति का भूलोक के किस समुदाय पर कब, क्यों, क्या प्रभाव पड़ेगा? इस प्रकार के पूर्वाभास मनुष्य की कितनी ही कठिनाइयों के निराकरण एवं सुविधा संवर्धन में काम आ सकते हैं। इस शोध शाखा के अन्तर्गत इसी वर्ष से एक नये खोजे गये नेपच्यून, प्लूटो, यूरेनस ग्रहों का भी अतिरिक्त ग्रह गणित सम्मिलित रहेगा। ज्योतिष भी अनेक प्रयोजनों में अध्यात्म विज्ञान के समन्वय की ही आवश्यकता पूर्ण करता है। इसलिए वर्तमान प्रयोग परीक्षण में उसे भी सम्मिलित रखा गया है। सचेतन अन्तग्रही प्रभावों के सूक्ष्म परिणामों की उच्चस्तरीय जानकारी उपलब्ध करने के लिये आज यंत्रों के साथ नयी मान्यताओं एवं उपकरणों का समन्वित परीक्षण अनिवार्य है। यही विचार कर प्रस्तुत अनुसंधान में ज्योतिर्विज्ञान की शोध को भी स्थान दिया गया है।
इसके अतिरिक्त प्रकृति के अन्यान्य अविज्ञात एवं अनिर्णीत रहस्यों का पता लगाने में शोध की एक सुविस्तृत विषयसूची है। मनुष्य के अन्दर पायी जा सकने वाली अतीन्द्रिय क्षमताओं का आधार, स्वरूप एवं अभिवर्धन उपचार भी इस खोज का एक अंग माना गया है।
इस ब्रह्माण्ड में अदृश्य प्राणियों का भी एक समुदाय विद्यमान है। इन्हें प्रेतात्मा, देवात्मा आदि के नाम से जाना जाता है। इनका अस्तित्व यदि है तो कैसा है? और उनका मनुष्य के साथ आदान- प्रदान चल पड़ने पर किस पक्ष का क्या हित- अहित हो सकता है? यह विषय भी शोध प्रयोजन में सम्मिलित रखा गया है। तथ्यों का पता लगाने में वैज्ञानिक परीक्षण के साथ तर्क, तथ्य और प्रमाणों को भी सम्मिलित रखकर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयत्न किया जा रहा है।
अध्यात्म क्षेत्र में पुरातन इतिहास ग्रंथों के संदर्भ तथा प्रामाणिक व्यक्तियों के कथन, अनुभव एवं प्रमाण साक्षियों का अवलम्बन लिया गया है, जबकि विज्ञान की प्राय: पच्चीस प्रमुख शाखाओं को आधार मानकर उन कसौटियों पर प्रतिपादनों को परखने का प्रयत्न चल रहा है। इसके अतिरिक्त और भी विषयों का ध्यान हैं, जिन्हें समयानुसार शोध प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाता रहेगा।
कहा जा चुका है कि अध्यात्म और विज्ञान दोनों ही इस विश्व की महान शक्तियाँ हैं। दोनों के समर्थन- सहयोग से सत्य के अधिक समीप तक पहुँचने का अवसर मिलेगा। साथ ही दोनों के समर्थन से जो प्रतिपादन प्रस्तुत होगा, वह जन मानस में स्थान भी सरलतापूर्वक प्राप्त कर सकेगा। आशा की जानी चाहिए कि यह छोटा सा प्रयोग प्रयत्न अगले दिनों व्यक्ति कल्याण एवं विश्व कल्याण की महती भूमिका सम्पादित कर सकने में समर्थ होगा।