कालनेमि की माया से बचें

देवियो, भाइयो! आज से लगभग पचास वर्ष पहले हमने गायत्री परिवार की स्थापना की थी और अखण्ड ज्योति पत्रिका निकालना शुरू किया था। बहुत लंबा समय हो गया। इस पचास साल में हमने क्या किया? जिस तरीके से समुद्र में डुबकी लगाने वाले मोती ढूँढ़- ढूँढ़कर लाते हैं, हमने भी उसी तरीके से संसार भर में डुबकी लगाई और यह देखा कि कौन से आदमी प्राणवान हैं, कौन जीवंत हैं? कौन ऐसे हैं, जो आने वाले समय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में समर्थ होंगे। यह हमने बहुत गंभीरता से तलाश किया। हिन्दुस्तान में हमको काफी लोग मिले, क्योंकि यह ऋषियों की भूमि है, देवताओं की भूमि है। यहाँ हमारे चौबीस लाख के करीब गायत्री परिवार के मेंबर हैं। फिर हमने देखा कि केवल हिंदुस्तान तक ही हमें सीमित नहीं रहना चाहिए, वरन् सारे संसार में निगाह डालनी चाहिए, सारे संसार में खोजबीन करनी चाहिए। मित्रो! सारे संसार की खोज- बीन की तो सबसे पहले प्रवासी भारतीयों को देखा, क्योंकि वे ऋषि- भूमि की संतान हैं। उनको देखना, उनको समझना सुगम था। इसके अलावा वे लोग भी हैं, जो हिंदुस्तान के निवासी नहीं हैं, लेकिन संसार के निवासी तो हैं। उन सभी को देखा और देखकर सभी को हमने अपने कुटुंब में- अपने परिवार में एक माला के तरीके से गूँथ लिया। ये गुँथी हुई माला है। गायत्री परिवार क्या है? एक गुँथी हुई माला है। इसमें कौन- कौन हैं? इसमें मोती हैं, हीरे हैं, पन्ना हैं, जवाहरात हैं। इन सबको- एक बढ़िया आदमी को जोड़ करके हमने रखा है। जिसमें से आप लोग हैं।

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