गीत संजीवनी-4

उगो सूर्य की तरह

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उगो सूर्य की तरह

उगो सूर्य की तरह गगन पर, बन प्रकाश छा जाओ।
और अँधेरा इस जगती का, जलकर स्वयं मिटाओ॥

मंद हवा बनकर बाँटो, नव प्राण थकी साँसों को।
फूलों सी मुस्कान बनो, बिखरा दो उच्छ्वासों को॥
बन अषाढ़ के मेघ भिगो दो, सूखी धरती का तन।
जिससे नव उल्लास जगे, भर उठे मोद से कण- कण॥
और साथ में कोई सुखकर, संदेशा भी लाओ॥

बनो सुशीतल छाया तरु की, भ्रांति पथिक की हर लो।
औरों को उल्लास बाँटकर, जीवन सार्थक कर लो॥
सरिता के सम बहो, प्राण भरने दाने- दाने में।
देने में जो खुशी अरे, वह रखी कहाँ पाने में॥
सतत् समर्पण द्वारा सागर, की बड़वाग्नि बुझाओ॥

पर्वत से दृढ़ विश्व हितों के, शुभ संकल्प करो तुम।
निर्झर बनकर प्यास बुझाने, को अनवरत झरो तुम॥
राह दिखाओ सदा दूसरों, को बनकर ध्रुव तारा।
पड़े रोशनी बनकर धरती, पर प्रतिबिम्ब तुम्हारा॥
बन ऊषा की लाली जन- जन, के मन कमल खिलाओ॥

हृदय बनाओ अपना जैसा, विस्तृत नील गगन है।
सहनशील बन जाओ, जैसा धरती का आँगन है॥
सागर बनकर रत्न राशि, बाँटो श्रमशील मनुज को।
बनो ओस के कण नम कर दो, दिन की तपती रज को।
शशि बन निशि में भी पथिकों, के हित प्रकाश फैलाओ॥

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