गीत संजीवनी-4

उठो प्रबुद्ध नारियों!

<<   |   <   | |   >   |   >>
उठो प्रबुद्ध नारियों!

उठो प्रबुद्ध नारियों, प्रकाश विश्व में भरो।

जिन्हें न भान मार्ग का, अथाह अंधकार में।
न ले सके जो श्वाँस बैठकर मृदुल बयार में॥
है जिन्दगी पठार सी- दुरूह जिनके वास्ते।
भरे हैं मात्र कष्ट कंटकों से जिनके रास्ते॥
बनो सुगन्ध युक्त पुष्प और राह में झरो।
उठो प्रबुद्ध नारियों, प्रकाश विश्व में भरो॥

जिन्हें न मिल सकी है तृप्ति- रूप बूँद स्नेह की।
न प्यास प्राण की बुझी न अग्नि शान्त देह की॥
जो स्वार्थों में लिप्त हैं, परमार्थ का न भान है।
कुछ जिन्हें न मानवीयता का तनिक ध्यान है॥
उन्हें कहो कि शांतिकारिणी सुनीतियाँ वरो।
उठो प्रबुद्ध नारियों, प्रकाश विश्व में भरो॥

जहाँ मरुस्थली वहाँ, सु- धार नीर की बनो।
जहाँ है वेदना वहीं समाप्ति पीर की बनो॥
अधर जो शुष्क हैं- सभी को बाँटती चलो मनी।
बनो असीम पूर्णता दिखे जहाँ- जहाँ कमी॥
बनाओ नई नीतियाँ- कि अशिवता का तम हरो।
उठो प्रबुद्ध नारियों, प्रकाश विश्व में भरो॥

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118