राम और श्रीराम एक हैं, दुनियाँ जान न पाई।
दोनों ने ही एक तरह की, रामायण दुहराई॥
सुनो रे सन्तों दोनों की प्रभुताई॥
राम अयोध्या में जन्में थे, ऋषिकेश तप साधा।
बला अतिबला विद्या पाई, चीर अनेकों बाधा।
खरदूषण, त्रिशिरा, बलि वधकर, ठकुराई दिखलाई॥
आँवलखेड़ा में जन्में, तप किया हिमालय जाकर।
किया जागरण कुण्डलिनी का, जौ की रोटी खाकर।
ब्रिटिश हुकूमत मार भगाने, की थी कठिन लड़ाई॥
शिव का तोड़ पिनाक राम ने, सीताजी को ब्याहा।
बन्धन तोड़ सनाढ्य, गौड़ का, इनने शौर्य निबाहा।
असुर नाश की भुजा उठा, दोनों ने शपथ उठाई॥
अपने प्रण के लिए राम थे, जंगल- जंगल घूमे।
पत्थर पानी में तैराने, की थी शक्ति प्रभु में।
रीछ- वानरों से ही लंका, पल में गई ढहाई॥
दोनों पुरुष विराट्, संगठनकर्ता भी दोनों हैं।
सन्त और योद्धा दोनों हैं, दुःख हर्ता दोनों हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम दोनों, विमल हृदय सुखदाई॥
युग परिवर्तन का कठोर, व्रत लेकर दुनियाँ छानी।
पश्चिम तक के लोगों ने, उनकी महिमा पहचानी।
ध्वजा देवसंस्कृति की, सारी दुनियाँ में फहराई॥
श्रीराम जन्में कलियुग में, धर्म- कर्म सब भूले।
वह साहित्य लिखा जो, नास्तिक के मन को भी छू ले।
वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की, ज्योति अखण्ड जलाई॥
उत्तरकाण्ड महान् ज्ञान का, सेतु सभी को भाया।
धर्म और संस्कृति का सबको, पावन पाठ पढ़ाया।
उनकी पराशक्ति की महिमा, कवि से जाये न गाई॥
ऊँच- नीच और जाति- पाँति का, बन्धन उनने तोड़ा।
सबको गले लगाया उनने, दलित न कोई छोड़ा।
रामराज्य की कठिन कल्पना, कर साकार दिखाई॥
किये राम ने अश्वमेध सौ, उन्नत राष्ट्र बनाया।
अपना देश वीर्यवानों का, देश तभी कहलाया।
वही श्रृंखला श्रीराम ने, फिर से आज चलाई॥
शक्ति सिया की, काम राम ने, पिछली बार दिखाया।
अब की बार शक्ति दी प्रभु ने, माँ ने मार्ग दिखाया।
नारी शक्ति महान जगत को, यह अनुभूति कराई॥
मुक्तक-
अवतारी नर तन धारण कर, प्रभु धरती पर आते हैं।
इनकी करुणा का पौरुष का, लाभ सभी जन पाते हैं॥
होती इनकी शक्ति अपरिमित, कोई समझ नहीं पाता है।
जो श्रद्धा का मूल्य चुकाते, वे ही लाभ उठाते हैं॥