गीत संजीवनी-12

ज्योति जली घर घर

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ज्योति जली घर घर में, आई- आई दिवाली।
दीप शिखा मुस्काई, आई- आई दिवाली॥

घर आँगन देहरी दरवाजे, जगमग आज सुशोभित साजे।
नव उल्लास सभी में, लाई- लाई दिवाली॥

पर्व मनोरम यह दीपों का, राम भरत से कुल दीपों का।
भ्रातृ प्रेम ले आई, आई- आई दिवाली॥

अँधियारा कितना हो भारी, नन्हीं ज्योति करे उजियारी।
स्नेह डगर दिखलाई, आई- आई दिवाली॥

मन्दिर, मस्जि़द या गुरुद्वारा, नन्हा दीप सभी को प्यारा।
सबमें प्रीत जगाई, आई- आई दिवाली॥

मन का अँधियारा मिट जाये, दीवाली का पर्व मनायें।
घर- घर खुशियाँ छाईं, आई- आई दिवाली॥

मुक्तक-
दीपावली मनायें हम सब, संकल्पों को धारण कर।
खुशियाँ बाँटे हम आपस में, दुःखीजनों के आँसू पीकर॥

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