होली का आया त्यौहार, बहार लिये संग में।
मस्ती का हुआ संचार, संचार रग- रग में॥
कोई वीराना न कोई पराया।
जो भी मिला वो गले से लगाया॥
समता का आया उभार, उभार जन- जन में॥
मस्ती का आलम है सुस्ती हराम है।
अंग- अंग पुलक रहा दुःख का क्या काम है॥
रस से भरा है संसार, संसार पग- पग में॥
द्वेष, बैर को होली में झोंको।
गन्दी मलिनता को झाड़ पोंछ फेंको॥
शठता पर है ये प्रहार, प्रहार घर- घर में॥
कोई गरीब है न कोई अमीर है।
ना कोई सेठ है न कोई फकीर है॥
सबमें उमड़ता है प्यार, प्यार हर दिल में॥
मुक्तक-
नये सृजन का सुखद सन्देशा, होली पर्व है लाया।
जो है श्रद्धावान स्वयं, अनुदान वही ले पाया॥