गीत संजीवनी-14

श्री गुरुपद- चिन्ह (वन्दना)

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१. गुरुं- गुरोर्वन्द्य पदं पुनीतं परमात्मरूपं परतः परंच।
युगर्षिरूपं- वेद स्वरूपं, गुरुपाद चिह्नं हि नमस्करोमि॥

श्री गुरु चरण चिन्ह पुनीत पावन,चित्शक्तिमय दिव्य महिमा अगम है।
ऋषिकल्प तप- ज्ञान के स्रोत अनुपम, गुरुपादचिन्हों को नित नमन है॥

२.ओंकार- ह्रिं मर्मज्ञविशेषवन्द्यम्।
शिष्येभ्य एतान् प्रतिपादयच्छ्री,गुरुपाद चिह्नं हि नमस्करोमि॥

ओंकार ह्रिं श्रीं क्लीं बीजमन्त्रादि, गूढ़ार्थ बोधक- प्रेरक सघन हैं।
शिष्यादि के उज्ज्वल पथ- प्रदर्शक, गुरुपादचिन्हों को नित नमन है॥

३. यज्ञाग्नि- होत्रादि धीरं- विनीतम्।
ब्रह्मात्मनोरैक्य विवेकिनं श्री,गुरुपाद चिह्नं हि नमस्करोमि॥

यज्ञादि- परमार्थ के रूप शाश्वत्, विनम्रता धैर्य के शुद्धघन हैं।
आत्मा- परब्रह्म के योगकर्ता, गुरुपादचिन्हों को नित नमन है॥

४. दोषादि- व्यालावलि वैनतेयं, विवेक- वैराग्य।
आत्मावबोधेन विनीतशिष्यं, गुरुपाद चिह्नं हि नमस्करोमि॥

दोषादि- सर्पादि भक्षक गरूड़सम, विवेक, वैराग्य ममता सदन हैं।
प्रिय- दिव्यनायक,आत्मा प्रबोधक, गुरुपादचिन्हों को नित नमन है॥

५. अनन्त संसार समुद्र पारे, गन्तुं महानावमिव प्रबुद्धम्।
जाड्यादि दोषाब्धि सुवाडवाग्निं,गुरुपाद चिह्नं हि नमस्करोमि॥

अनन्त संसार भवसिन्धुतारक, द्रढ़पोत सम श्रेष्ठ करते यतन हैं।
दोषादिशोषक, सद्भाव पोषक, गुरुपादचिन्हों को नित नमन है॥
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