जीवन खतम हुआ तो, जीने का ढंग आया।
जब शमाँ बुझ गई तो, महफिल में रंग आया॥
मन की मशीनरी ने, तब ठीक चलना सीखा।
जब बूढ़े तन के हर एक, पुर्जे पे जंग आया॥
गाड़ी निकल गई तो, घर से चला मुसाफिर।
मायूस हाथ मलता, वापस बैरंग आया॥
फुरसत के वक्त में ना, सुमिरन का वक्त पाया।
उस वक्त वक्त माँगा, जब वक्त तंग आया॥
आयु ने ‘नत्थासिंह’ जब, हथियार फेंक डाले।
यमराज फौज़ लेकर, करने को जंग आया॥
मुक्तक-
क्षण क्षण क्षण क्षण बीतते, जीवन बीता जाय।
क्षण क्षण का उपयोग कर, बीता क्षण न आय॥
बीते क्षण तो चल दिये, आने वाले दूर।
यह क्षण आया सामने, कर प्रयोग भरपूर॥
दोहा-
मन विषयन में रमि रह्यो- हरिसों कियो न हेत।
अब पछताये होत क्या- जब चिड़ियाँ चुगि गईं खेत॥