गीत संजीवनी-7

नहीं स्वयं को अबला समझो

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नहीं स्वयं को अबला समझो- यह भ्रम है नादानी है।
नारी जीवन प्रभु की रचना,यह लासानी है, प्रत्यक्ष भवानी है- २॥
नारी तन तो आदिशक्ति का- प्रकट रूप कहलाता है॥
(यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः)
भूल गई क्यों अपना गौरव- जो इतिहास बताता है।
प्रकृति रूप में वही शक्ति तो- जीवन रस विकसाती है।
एक भू्रण को जीवन रस दे- प्राणी नया बनाती है॥
किसी योनि में हो जीवन की- निश्चित यही कहानी है॥
नारी तन दुर्बल मत समझो- नई सृष्टि यह कर्ता है।
या देवि- सर्व भूतेषु............॥
नर तन में सारी विशेषता- यह तन ही तो भरता है॥
नर पर मादा कहीं न आश्रित- पशु पक्षी कोई देखो।
नारी पुरुष पर क्यों आश्रित है- अरे जरा समझो देखो॥
बनो पुरुष की पूरक रक्षक- यही वेद की वाणी है॥
नये सृजन उज्ज्वल भविष्य हित- स्रष्टा की है तैयारी।
नारियाँ रच दें उज्ज्वल चरित्र जो- तो आना होगा उज्ज्वल भविष्य को।
नारी बिना नहीं यह सम्भव- समझ रही दुनिया सारी॥
जीवन का हर सृजन मोर्चा- तेरे बिना अधूरा है।
जागो नारी बनो अग्रणी- देखो अवसर पूरा है॥
कर दिखलाओ पूरी रचना- जो स्रष्टा ने ठानी है॥

मुक्तक-

नारी में है शक्ति अपरिमित- फिर से उसे जगाना है।
उठो नारियों नये सृजनहित- तुमको आगे आना है॥

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