माँ इतनी कृपा कर दे, बस इतनी दया कर दे।
इन्सान का दिया तन, इन्सानियत भी भर दे॥
माँ अगणित विभूतियाँ दे, तूने हमें बनाया।
सब कुछ तो याद रखा, हमने तुझे भुलाया।
सब ओर तुझे देखें,बस ऐसी नजर कर दे॥
माँ तेरे दर से हटकर, भटके हैं बहुत हम भी।
थक भी बहुत गये हैं, भोगे हैं बहुत गम भी।
अब नेक रास्ते पर, चलने की शक्ति भर दे॥
माँ दुःख दर्द को पतन को, धरती से मिटा देंगे।
सपनों को तेरे माता, सच करके दिखा देंगे।
बलिदानियों सी हिम्मत, दिल में हमारे भर दे॥
मुक्तक-
तुझसे मानव तन पाकर माँ, माँग रहे हम यह वरदान।
देश, धर्म, संस्कृति के खातिर, हो जायें हँस- हँस बलिदान॥