गीत संजीवनी-9

मातृभूमि की माटी लेकर

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मातृभूमि की माटी लेकर- बढ़ो सृजन सेनानी।
भारत माँ के गौरव की फिर- रच दो नयी कहानी॥
भूमि का कर्ज चुकाने चलो- नया सौभाग्य जगाने चलो।
दिग्विजय का आया है पर्व- उठो अब अवसर मत चूको॥

देवसंस्कृति घर- घर में, अब स्थापित करना है।
लगे प्राण की बाजी फिर भी, हमें नहीं डरना है॥
हे! भारत के वीर सपूतों, अब तुम आगे आओ।
संस्कृति की दिग्विजय हेतु तुम, जौहर फिर दिखलाओ॥
संस्कृति के इस महासमर के, बन जाओ बलिदानी॥

महाकाल ने महाक्रान्ति की, है आवाज लगाई।
हमने उसको सफल बनाने, की है शपथ उठायी॥
बिगुल बजाकर गाँव- गाँव, घर- घर इसको पहुँचाओ।
ले लो श्रेय देव बन जाओ, अब न तनिक सकुचाओ॥
वसुन्धरा पर गूँज उठे, प्रज्ञावतार की वाणी॥

लाल मशाल हाथ में लेकर, जागृति शंख बजाओ।
भारत माँ का खोया गौरव फिर से वापस लाओ॥
अत्याचार, अनीति, पाप का, कर दो पूर्ण सफाया।
बढ़ो निडर कह दो दुनियाँ से, देवदूत है आया॥
बिना रुके पहुँचो मंजिल तक, सच्चे युग निर्माणी॥

महाकाल का है आवाहन, पीछे मत हट जाना।
समय चूकने पर तो होगा, बस पीछे पछताना॥
चाहो तो संकल्प जगाकर, कुछ भी कर सकते हो।
थोड़े श्रम से इस जीवन को, धन्य बना सकते हो॥
उठो पार्थ फिर याद करो, तुम गीता वाली वाणी॥

मुक्तक-

है अधीर मानवता देखो- उसको धैर्य बँधाना है।
स्वार्थ भरी आपा- धापी से- जग को आज बचाना है॥
सुनो दिग्विजय हेतु- देवसंस्कृति ने शंख बजाया है।
सृजन सैनिकों आगे आओ- युद्ध निमन्त्रण आया है॥
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