कोटि कोटि नवयुवक
कोटि कोटि नवयुवक, विश्व के मंगल हेतु चले।
बढ़ा अतीव उत्साह कि फिर से, बुझते दीप जले॥
जीवन सरिता हुई तरंगित, हुआ मनुज समर्पित।
भावपूर्ण प्रेमाज लिखे अब, हों देव, पितृ, ऋषि, तर्पित॥
काँप उठी यह सोच असुरता, दिन आपको न भूले॥
अब अशक्ता दूर हुई है, शक्ति पुनः भरपूर हुई।
काल पुरुष से सन्निकर्ष से, अहंकारिता चूर हुई॥
घोर भयंकर भ्रम के बादल, देखो तभी टले॥
क्रांति विचारों में आयेगी, शांति घटा बनकर छायेगी।
युग निर्माण योजना निश्चित, सफल हमारी हो जायेगी॥
पंथ प्रकाशित रहे प्रतिक्षण, ज्योति अखण्ड जले॥