बिछुड़े हुए मिलायें
बिछुड़े हुए मिलायें, सबको गले लगायें।
युग का नया तराना, हम एक साथ गायें॥
है जन्म से यहाँ पर, कोई बड़ा न छोटा।
है जाति वंश भर से, कोई खरा न खोटा॥
तब क्यों न हर मनुज को, अपना स्वजन बनायें॥
होता समाज में है, गुण कर्म से विभाजन।
गीता सिखा रही है, सच्चा नियम सनातन॥
जो है दलित युगों से, झुककर उन्हें उठायें॥
अलगाव में हमेशा, हम बिखरते रहे हैं।
होती प्रगति कहाँ से, जब रूढ़ि में बहें हैं॥
अब क्यों न स्वागतम हम, सबके लिए सजायें॥
जो थे सगे हमारे, वे बन गये पराये।
इतिहास कह रहा है, हमने रतन गँवाये॥
चेतो अभी समय है, अब फिर न चूक जायें॥
झंझट अनार्य अथवा, अब आर्य का कहाँ है।
शक हूण दल सभी का, संगम हुआ यहाँ है॥
अब क्यों अपच हुआ है, इस ब्याधि को मिटायें॥
जिसने हमें डसा है, वह नागपाश तोड़े।
वसुधा कुटुम्ब को अब, ऐसा विधान जोड़े॥
हम कौन थे हुए क्या, यह सब नहीं भुलायें॥