पाप हारिणी दुःख निवारणी
पाप हारिणी दुःख निवारणी, माँ गंगे तेरी जय जय जय।
जटा शंकरी नाम तिहारो, माँ गंगे तेरी जय जय जय॥
पर्वत और गुफाओं में से, बहती पावन धारा है।
लहरें कल- कल कर गाती हैं, ये संगीत प्यारा है॥
इन्द्र और पवन भी गाते, माँ गंगे तेरी जय जय जय॥
विष्णु के चरणों का धोवन, जल में तेरे समाया है।
जटा मुकुट में शंकर ने माँ, गंगे तुझे सजाया है॥
सभी देव और मानव गाते, माँ गंगे तेरी जय जय जय॥
भोर की किरणों से भानु जब, तेरे जल को धोता है।
बज उठते हैं शंख मंदिर में, और कीर्तन होता है॥
टन टन करके घण्टे कहते, माँ गंगे तेरी जय जय जय॥
सूरज जब छिपता है मैया, पावन संध्या आती है।
चन्द्र छटा धरती में आ, अपना रूप दिखाती है॥
तेरी गोद में बैठ हम गाते, माँ गंगे तेरी जय जय जय॥
हरिद्वार और ऋषिकेश को, तूने स्वर्ग बनाया है।
जिसने भाव से लिया चरणामृत,उसका कष्ट मिटाया है॥
सब भक्तों को तू खुश करती, माँ गंगे तेरी जय जय जय॥