फैल रहा अज्ञान रे
फैल रहा अज्ञान रे, भटक रहा इन्सान रे।
आजा गीता ज्ञान सिखा जा, गीता के भगवान रे॥
जब- जब बढ़े अधर्म जगत में, होय धर्म की हानि रे।
तब- तब ही तुमने आने की, कठिन प्रतिज्ञा ठानी रे॥
फिर हुई धर्म की ग्लानि रे, केशव कृपा निधान रे॥
बढ़े बहुत खल चोर जुआरी, निर्दयी माँसाहारी रे।
कत्ल होय नित बूचड़ घर में, लाखों गऊ बिचारी रे॥
भूल धर्म ईमान रे, बना मनुज शैतान रे॥
अण्डा, माँस, शराब पिवैया, बहुत बढ़े हैं थोड़े ना।
मेंढक, मछली, बकरी, सूअर, साँप तलक भी छोड़े ना॥
ऋषियों की सन्तान रे, बनी आज नादान रे॥
लाज बचा जा पुनः बुलाती, है भारत की अर्धांगी।
स्वाँग सिनेमा दुस्सासन, मोहे हँस- हँस के कर रहे नंगी॥
अंधों की सन्तान रे, छोड़ि चुकी कुलकान रे॥
रक्षक भक्षक बने कि उल्टी, बार खेत को खाय रही।
चोर चबूतरा चढ़े शाह, सज्जनता खड़ी कराह रही॥
कर सज्जन पर त्राण रे, विनति पर दो ध्यान रे॥
मनुज देवता बने यहाँ की, धरती स्वर्ग समान बने।
हरिराम सुखधाम देश की, फिर से ऊँची शान बने॥
केशव कृपा निधान रे, विनति पर दो ध्यान रे॥