फूट पड़े यदि आप हृदय से
फूट पड़े यदि आप हृदय से, बन भावों की धार।
फिर तो मानवीय संवेदन का, खुल जाये द्वार॥
करुणा स्रोत स्वयं फूटे जब, कैसा वहाँ अभाव।
वहाँ छलक उठते हैं फिर तो, संवेदन, सद्भाव॥
कैसा भी पाषाण हृदय फिर, हो सकता है चूर।
करुणानिधि के साथ, कौन फिर रह सकता है क्रूर॥
फूट पड़े प्रभु आप हृदय से, बनकर पावन प्यार॥
सद्भावों की लहरें छूलें, जन मानस के कूल।
मानवीय अन्तर में फिर तो, खिलें प्यारके फूल॥
महक उठे मानव की वसुधा, बिखरे प्रेम पराग।
मानव के प्रति फिर मानव में, छलक उठे अनुराग॥
सद्संकल्पों, सद्भावों के, भ्रमर करें गुंजार॥
फिर कैसा शोषण उत्पीड़न, कैसी कसक कराह।
मानव कैसे सुन सकता है, फिर मानव की आह॥
जहाँ व्यथित हो मनुज व्यथा से, मनुज हृदय की पीर।
मनुज व्यथा की कथा मनुज का, उर देती है चीर॥
भावों के भगवान! मनुज के, उर में लो अवतार॥
सृजन स्वर्ग का कर सकता शुभ, भावों का संस्पर्श।
सतयुग फिर से ला सकता है, भावों का उत्कर्ष॥
पुलकित होती है मानवता, देख देख सद्भाव।
मानव बनने को देवों में, उमड़ा करता चाव॥
स्वर्ग वहाँ है जहाँ शील, सौजन्य, स्नेह, सहकार॥