प्रभु का ही दर्शन हो
प्रभु का ही दर्शन हो सब में, यह जीवन प्रभुमय बन जायें।
यह जीवन ऐसा हो जाये॥
अपनेपन का कुछ भान रहे, मिट जाये परायापन सारा।
सबमें अपने को ही देखें, हमसे न रहे कोई न्यारा॥
सर्वत्र एक ही तत्व दिखे, चाहे जिस ओर नजर जाये॥
तन- मन से जो शुभ कर्म करें, सबको प्रभु का पूजा माने।
अपना हममें कुछ भी न रहे, सब कुछ प्रभु का है यह जाने॥
जैसा प्रभु चाहे हम चाहें, उसकी इच्छा ही मन भाये॥
दुर्भावों को हम दूर भगा, सद्भावों का सम्मान करें।
ईर्ष्या न किसी से हो मन में, संतोष सुधा का पान करें॥
हो निश्छल निर्मल बुद्धि सदा, कुविचार कभी न आ पाये॥
भगवान यही वर दो हमको, कुछ और न हो सुख की इच्छा।
तुमको न कभी हम भूल सकें, सबकी अंतिम यह भिक्षा॥
कुछ सार्थक हो इस जीवन का, यह व्यर्थ न यूँ ही बह जाये॥
हमारे साधु- संतों की संगीत साधना का ही यह प्रभाव था कि कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, तुकाराम, नरसी मेहता आदि ऐसी कृतियाँ कर गए जो हमारे और संसार के साहित्य में सर्वदा ही अपना विशिष्ट स्थान रखेंगी। - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद