भगवान का अमर सुत
(धुन- चलना सिखा दिया है)
भगवान का अमर सुत, हैवान हो रहा है।
देखो पिशाच बनकर, हर आदमी जी रहा है॥
विकृत विचार विष से, फिर जल रही मनुजता।
देवत्व डर रहा है खुश हो रही दनुजता।
विष भर रहा हृदय में, उर ताप भी लिए हैं॥
चिंतन चरित्र में अब, विकृति बढ़ी हुई है।
चहुँ ओर कौरवों की, सेना खड़ी हुई है।
विध्वंस के लिए ही, हर आदमी जिये है॥