माँ ने आज निमन्त्रण भेजा
माँ ने आज निमन्त्रण भेजा, बन्धु तुम्हें बलिदान का।
महायज्ञ आरम्भ हो गया, आज नवल निर्माण का॥
आगे आओ होता बनकर, इसमें आहुति डाल दो।
युग साधक तुम रुको न क्षण भर, भय शंका को टाल दो॥
तुम्हें मिला जो अनुपम अवसर, उसका भर उपयोग लो।
बेला है सामूहिक श्रम की, उसमें अपना योग दो॥
ध्यान रहे हर क्षण, प्रति क्षण, अपने दायित्व महान का॥
ज्ञान रूपी पावन गंगा को, भू- पर हमें उतारना।
जन- मन को पवित्र करने की, करो भगीरथ साधना॥
तप का कल्पवृक्ष वह बोओ, सभी सिद्धियाँ फल आयें।
राग प्रभाती ऐसा गाओ, सोया गौरव जग जाये॥
अपनालो तुम पथ जनहित, जन- जन के कल्याण का॥
युगऋषि का संदेश सुनो रे, पहचानों युग साधना।
विश्वरूप परमेश्वर की, कर तो लो आराधना॥
कभी अधूरे रहे न भाई, पावन शुभ संकल्प हैं।
तेजस्वी युग साधक करते, युग का कायाकल्प हैं॥
सृजन करो सधे हाथों से, नये रूप इन्सान का॥
मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना संगीत के सैद्धान्तिक ज्ञान का लक्ष्य है।