मैने जीवन त्याग तितिक्षा
मैने जीवन त्याग, तितिक्षा, तप में सतत् गलाया।
तब जीवन के ‘ब्रह्मकमल’, को पूरी तरह खिलाया॥
ब्रह्मकमल में ब्रह्मतेज का, जादू बोल रहा था।
और ब्राह्मणोंचित जीवन की, महिमा खोल रहा था॥
ब्रह्मकमल की हर पंखुड़ि में, ब्राह्मण का परिचय है।
ब्रह्म और ब्राह्मण का युग- युग, से अटूट परिणय है॥
मैंने खिलकर ब्रह्मबीज का, है अम्बार लगाया॥
पड़े न रह जाये मेरे में, ब्रह्मबीज बिन बोए।
मैंने इन्हें कलेजे में रख, हैं जीवन भर ढोए॥
मेरे हों तो मेरे इन, बीजों को तुम बो देना।
कुछ तो मेरा भार घटाने, को तुम भी ढो देना॥
कहीं न हो ऐसा पछताऊँ, क्यों कर कमल खिलाया॥
ब्रह्मबीज बोए जाते तप से, तपती धरती पर।
और ब्राह्मणोंचित जीवन की, उपजाऊ धरती पर॥
भाग्यवाद के चक्कर में फँस, ब्राह्मण वंश घटा है।
त्याग, तितिक्षा, संयम, तप से, ही सम्बन्ध कटा है॥
भटके हुए पुरोहित ने ही, इस जग को भटकाया॥
आवश्यक है ब्रह्मबीज की, फसल उगाई जाये।
ब्रह्म परायण वृत्ति देश में, पुनः जगाई जाये॥
मार्गदर्शकों के अभाव में, सब ही भटक रहे हैं।
मानव के बहुमुखी प्रगति के, पहिये अटक रहे हैं॥
इसी वेदना से मेरा मन, द्रवित हुआ अकुलाया॥