गीत माला भाग ७

त्याग और तप के बल

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त्याग और तप के बल
त्याग और तप के बल पर ही, चलता है संसार।
जहाँ नहीं तप त्याग तनिक भी, वह जीवन बेकार॥
लिए उदर में शिशु को जननी, तप करती नौमास।
देकर सार भाग निज तन का, करती मनुज विकास॥
जहाँ सृजन है, वही त्याग का, गूँज रहा जयकार॥
तप करता किसान खेतों में, तप करता मजदूर।
तप से ही बनते वैज्ञानिक, विकसे तुलसी- सूर॥
दिया जिन्होंने त्याग स्वर्ग सुख, बने वही अवतार॥
त्यागा अपना रूप बीज ने, तभी वृक्ष बन पाया।
तपकर ही साधारण लोहा, फौलाद कहलाया॥
तपके द्वारा रचा विधाता, ने सारा संसार॥
आदर्शों हित कष्ट सहन ही, बन जाता तप रूप।
सर्वोत्तम उपयोग शक्ति का, बनता त्याग अनूप॥
यही यज्ञ के मूल मंत्र है, संस्कृति के आधार॥

संसार मुझसे चित्रों में बात करता है- मेरी आत्मा उसका उत्तर संगीत में देती है। -रविन्द्रनाथ टैगोर
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