तुमने अमृत पिया है
तुमने अमृत पिया है, हमको पिला दिया है।
मरते हुए जहाँ को, फिर से जिला दिया है॥
कोई न था ठिकाना असहाय जिन्दगी का।
दुःख दर्द था फसाँना, निरूपाय जिन्दगी का॥
हारे हुए खुदी से, मारे मरे पड़े थे।
जकड़े जरा मरण से हारे थके खड़े थे॥
हम कौन हैं कहाँ हैं, खुद से मिला दिया है॥
संसार सार वाला, यह साधना का घर है।
हर साँस यज्ञ करती, बलिदान का सफर है॥
निर्माण ज्ञान गंगा, की तारती लहर है।
जलती मशाल थामें, ऋषियों का वंश धर है॥
सविता, उषा उगाकर, जीवन खिला दिया है॥
अकुला उठी गिलहरी, सागर को पाटना है।
दुःख दर्द गिद्ध को फिर, सीता का बाँटना है॥
कितने कड़े हो जकड़े, हर पाश काटना है।
हारे पवन सुतों को, विश्वास बाँटना है॥
अन्याय का हिमालय, जड़ से हिला दिया है॥
सौगन्ध खा रहे हैं, विषपान हम करेंगे।
मुदीर जिन्दगी में, फिर प्राण हम भरेंगे॥
हम अग्नि देवता की ले साक्षी चले हैं।
आँधी बुझायेगी क्या, तूफान में जले हैं॥
तम को जड़ा तमाचा, यों तिलमिला दिया है॥