गीत माला भाग ८

देश की गमगीन हालत

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देश की गमगीन हालत
देश की गमगीन हालत, आज कैसे हो गई।
दीख पड़ता दृश्य मानो, भारतीयता सो गई॥
नष्ट होने जा रही थी, भारतीयता देश में।
तब मची थी क्रान्ति आजादी की सारे देश में॥
लाखों कट मर मिट गये, स्वाधीनता भी आ गई॥
तुमने सोचा था यहाँ, आदर्श हो श्रीराम का।
लोक सेवा में सदारत, रहने वाले श्याम का॥
क्या करें बापू तुम्हारे, मन की मन में रह गई॥
सत्य ही आदर्श था जिस भूमि भारत में कभी।
त्याग, तप, परमार्थ में, जीवन बिताते थे कभी॥
क्या कहें सर्वत्र अब तो, उल्टी गंगा बह गई॥
भ्रष्टाचारी बढ़ रही है, ब्लेक की भरमार है।
बिन मिलावट चीज मिलना, आजकल दुश्वार है॥
स्वार्थ साधन में ही दुनियाँ, हाय पागल हो गई॥
राष्ट्र के उत्थान में कई, योजनाएँ चल रही।
इनके पीछे देश में, अरबों की सम्पत्ति फूँक रही॥
स्वार्थ घुन यहाँ भी लगा, बहुतेक निष्फल हो गई॥
देश में नैतिक पतन है, तीव्रता से बढ़ रहा।
श्याम रोको अन्यथा, यह गर्त में है गिर रहा॥
वृक्ष क्या पनपे भला, जब जड़ में दीमक लग गई॥
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