यज्ञ हुआ प्रारम्भ भाइयों
यज्ञ हुआ प्रारम्भ भाइयों, नवयुग के निर्माण का।
होता बनने चलो लिये, संकल्प विश्व उत्थान का॥
मानव डूबा है सपनों में, हुआ सत्य से दूर है।
छोड़ शिव परमार्थ स्वार्थ के, अन्ध नशे में चूर है॥
जीवन का सुन्दरम् खो गया,क्रूर कुरूपता छा गये।
सूर्पनखा छद्मों की युग के, लक्ष्मण को भरमा गये॥
ज्ञान जगावो मानव में, सद्- असद् बीज पहचान का॥
दानवत्व जन- मन की मेटो, बदलो सारी नीतियाँ।
भार बन गई हैं जो ऐसी, मेटो सभी कुरीतियाँ॥
ऐसा जीवन दो समाज को, जिसमें सभी समान हो।
सबके लिए सुलभ सुख के, और सुविधा के साथ हो॥
ध्यान रखें सब एक दूसरे के, समुचित कल्याण का॥
सदुपयोग शक्ति का करो, बस मात्र सृजन के वास्ते।
मंजिल तक पहुँचायें ऐसे करो विर्निमित रास्ते॥
अभी दूर है पूर्णाहुति का, समय उठो जागो जरा।
पोषक गंधित पवन बहे, जो जाए धन्य वसुन्धरा॥
मनुज- मनुज को जीवन बाँटों, तेज जगाओ प्राण का॥