यह न समझो कि ज्योति
यह न समझो कि ज्योति बुझ गई है,
जल उठी है मशालें जलाने।
काय पिंजर को त्यागा है हमने,
ब्रह्म बीजों से उपवन सजाने॥
ब्रह्मवर्चस जगेगा पुनः विश्व का,
भाईचारा बढ़ेगा पुनः विश्व का।
देव मानव बढ़ेंगे नया रूप धर,
सत्य प्रेरक बनेगा पुनः विश्व का॥
यह न समझो कि सूरज नहीं है,
वह उगा है प्रभाती सुनाने॥
विश्व को मोड़ना यह बहुत ही कठिन,
रूढ़ियाँ मेटना भी है उससे कठिन।
सूक्ष्म से ही ये होंगे बहुत ही सरल,
युग बदलना भी तो है बहुत ही कठिन॥
यह न समझो हिमालय गला है,
वह गला ‘गंग’ जग में बहाने॥
मैं चला किन्तु रोने न दूँगा तुम्हें,
मैं चला किन्तु सोने न दूँगा तुम्हें।
कान मोडूँगा संकेत दूँगा तुम्हें,
क्यों रुके हो ये कहता रहूँगा तुम्हें॥
यह न समझो कि बिछुड़े हैं हम सब,
जुड़ गये हम मिलन गीत गाने॥
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अंग अवयव बनो यह मेरी चाह है,
श्रेष्ठ मानव बनो यह मेरी चाह है।
चल पड़ो नित निरन्तर मेरी राह में,
लोकसेवी बनो यह मेरी चाह है॥
तुम न समझो कि बीज मिट गया है,
वह मिटा वंश विस्तार करने॥