ये क्या कर रहे हो
ये क्या कर रहे हो किधर जा रहे हो।
अँधेरे में क्यों ठोकरें खा रहे हो॥
कहो क्या यही काम, है सज्जनों के ।।
नहीं ढंग है यह विवेकी जनों के।
कि दुनियाँ को बातों मे बहका रहे हो॥
कहाते हो तुम जिसके, पावंद बन्दे।
करो तो न उसकी ही, इज्जत के धन्धे।
गजब है कि तुम प्रभु को, बहला रहे हो॥
अरे फर्ज अपना, जरा तो निभाओ।
गिरो यदि स्वयं, दूसरों को मत गिराओ।
इंसानियत को क्यों झुठला रहे हो॥
खुदगर्जियों को जरा छोड़ दो तो।
ये जीवन की धारा जरा मोड़ दो तो।
दिशा हीन क्यों तुम बने जा रहे हो॥
जो अपनी बुराइयों को पहचानता और उन पर विजय प्राप्त करता है। वही परमवीर है।
-पं.श्रीराम शर्मा आचार्य