युग के राम विकल है
युग के राम विकल है, उनकी पीर बँटाना है।
ओ प्राणों के पवन तनय, संजीवनी लाना है॥
बेसुध जन- मानस का लक्ष्मण, लक्ष्य उपेक्षित है।
ऐसे में नूतन संजीवनी, शक्ति अपेक्षित है॥
जन- मानस के लक्ष्मण को, नव प्राण पिलाना है॥
उसे वासना, तृष्णा और अहंता, की शक्ति लगी।
आत्मबोध की अमर चेतना, उसमें नहीं जगी॥
जन- मानस की सुप्त चेतना, पुनः जगाना है॥
प्राणवान परिजन जो है बस, आश आज उनसे।
रामभक्त जो हैं संभव है, राम काज उनसे॥
आज समस्या का द्रोणागिरी, उन्हें उठाना है॥
व्यवधानों के कालनेमि संभव है, पथ रोके।
और प्रलोभन छद्म वेशधर, राम काज टोके॥
राम कृपा से साहस द्वारा, उन्हें हटाना है॥
सद्विचार की संजीवनी जन- मानस तक पहुँचे।
सुप्तलोक चेतना जागे, जनहित की सोंचे॥
सद्प्रवृत्ति संवर्धन का, अभियान चलाना है॥