व्यक्तित्व को हमारे
व्यक्तित्व को हमारे, गढ़ना हमें पड़ेगा।
सोपान साधना के, चढ़ना हमें पड़ेगा॥
है फूल वृक्ष पर जो, नभ से नहीं टपकते।
वरदान से किसी के, फल भी नहीं लटकते॥
बस वृक्ष की जड़ें ही रस खींचती धरा से।
पाती सशक्त जड़ ही, फल फूल उर्वरा से॥
व्यक्तित्व की जड़ों तक, बढ़ना हमें पड़ेगा॥
अन्दर छिपा हुआ है, जीवन्त देवता है।
वह शक्ति का खजाना, इसका जिसे पाता है॥
वह सिद्धियाँ संजोता है, आत्म साधना से।
मिलता अतुल बल है, जिसकी उपासना से॥
साधक समान पीछे, पड़ना हमें पड़ेगा॥
हम पर कषाय- कल्मष का, आवरण पड़ा है।
अंगार में परत बस, इस राख का चढ़ा है॥
जब आत्म साधना से, प्राणाग्नि जागती है।
अज्ञान की अँधेरी, तत्काल भागती है॥
प्रज्ञा- प्रकाश, पथ पर, बढ़ना हमें पड़ेगा॥
व्यक्तित्व कर परिष्कृत, चुम्बक उसे बनायें।
फिर दिव्य शक्तियों के, अनुदान खींच लायें॥
सोया हुआ हृदय का, देवत्व हम जगायें।
अपनी वसुन्धरा को, फिर स्वर्ग सा सजायें॥
व्यक्तित्व का नगीना, जड़ना हमें पड़ेगा॥