गीत माला भाग १३

युगऋषि की जीवनशैली

<<   |   <   | |   >   |   >>
युगऋषि की जीवनशैली

युगऋषि की जीवनशैली को, जीवन में जो अपनायेगा।
वही बनेगा प्रिय शिष्य, औ सच्चा साधक कहलायेगा।।

ज्ञान रूप गुरुवर स्वरूप थे, गागर में थे सागर।
सत्य सनातन प्रखर तेजमय, सहज प्यार के आगर।।

ज्ञान रूप गुरु सद्विचार को, घर- घर में जो पहुँचायेगा।
वही बनेगा प्रिय शिष्य, औ सच्चा साधक कहलायेगा।।

विश्वमित्र वे विश्ववंद्य थे, सबको गले लगाया।
मातु पिता सहचर बन करके, ऊँगली पकड़ चलाया।।

गुरुवर की ही तरह सहज ही, निर्मल प्यार लुटा पायेगा।
वही बनेगा प्रिय शिष्य, औ सच्चा साधक कहलायेगा।।

युग के व्यास भगीरथ नारद, वे वशिष्ठ अवतारी।
प्रखर तपस्वी तपोनिष्ठ वे, त्रिदेवों से भारी।।

युगऋषि- सद्गुणों की खुशबू, दुनियाँ में जो फैलायेगा।
वही बनेगा प्रिय शिष्य, औ सच्चा साधक कहलायेगा।।

युग शक्ति के माध्यम गुरुवर, महायज्ञ के सृष्टा।
भूत भविष्यत् वर्तमान, उज्ज्वल भविष्य के दृष्टा।।

साधन समय लगाकर जो भी, जीवन अर्पित कर पायेगा।
वही बनेगा प्रिय शिष्य, औ सच्चा साधक कहलायेगा।।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118