विश्व व्यापी सघन तम
विश्व व्यापी सघन तम को मेटने को।
ज्ञान का एक दीप हम भी तो जला लें॥
लोग व्याकुल है, कली खिलती नहीं है।
प्राण पोषक वायु भी मिलती नहीं है॥
आसमाँ तक का प्रदूषण मिट चलेगा।
पौधे आँगन में चलो हम भी लगा लें॥
मिट चली सद्भावना संध्या बनी सी।
दिख रही हर भौंह ऐठीं सी तनी सी॥
दे भले कोई कटीले कटु वचन पर।
मित्रता का हाथ हम आगे बढ़ा लें॥
तम अशिक्षा का चतुर्दिक छा रहा है।
आदमी उठने नहीं यों पा रहा है॥
बाँटकर सद्ज्ञान की आभा सुनहरी।
देश को दीपावली सा जगमगा लें॥
मुखप्रधान देहस्य नासिका मुखमध्यके।
ताल हीनं तथा गीतं नासाहीनं मुखंयथा।।
अर्थात्- जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में मुख प्रधान अंग समझा जाता है और मुख में नाक को प्रधानता दी जाती है, ठीक उसी प्रकार संगीत में ताल को महत्त्व है। बिना ताल के गाना- बजाना वैसा ही होगा जैसा कि बिना नाक का चेहरा।