गीत माला भाग १५

सबमें अंश तुम्हारा

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सबमें अंश तुम्हारा

सबमें अंश तुम्हारा भगवन्, सबमें अंश तुम्हारा भगवन॥

जब देखा उगते सूरज को, अन्न सलिल देती इस रज को।
कीचड़ में खिलते पंकज को, गन्ध उड़ाते इस मलयज को॥
मैंने तुम्हें विचारा भगवन्, सबमें अंश तुम्हारा भगवन॥

इठलाते हँसते बचपन में, किसी दुःखी के विकल रुदन में।
उगते पौधों में उपवन में, इस जगती के हर कण- कण में॥
मैंने तुम्हें निहारा भगवन्, सबमें अंश तुम्हारा भगवन॥

मानवता को जब नर सोये, कलह बीज आपस में बोये।
व्यर्थ उमर के बोझे ढोये, बेकल प्राण व्यथित हो रोये॥
मैंने तुम्हें पुकारा भगवन्, सबमें अंश तुम्हारा भगवन॥

पिता पुत्र कैसे ये नाते, टूट भला वो कैसे पाते।
तुम आये दुःख द्वन्द्व मिटाते, सुख के अंदर फूल खिलाते॥
शाश्वत् तुम्हीं सहारा भगवन्, सबमें अंश तुम्हारा भगवन॥

संगीत समस्त विज्ञानों का मूलाधार है तथा ईश्वर के द्वारा इसका निर्माण विश्व के वर्तमान विसंवादी प्रवृत्तियों के निराकरण के लिए हुआ है।
- प्लेटो

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