गीत माला भाग १५

सबसे करना प्रेम जग में

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सबसे करना प्रेम जग में

सबसे करना प्रेम जगत में, यही धर्म सच्चा है।

जो हैं जगत में हीन पतित अति, उनको गले लगाओ।
जो हैं दीन दुःखी या पीड़ित, उनको धीर बँधाओ॥

जिनका कोई नहीं जगत में, उनको जा अपनाओ।
जो रोते हैं उन्हें हँसाओ, सबसे प्रेम जगाओ॥
सब में प्रभु का रूप निहारो, यही भाव अच्छा है॥

सबसे हिलमिल रहना सीखो, करो न द्वेष किसी से।
सबसे मीठी बोली बोलो, होगा भला इसी से॥

जो अनाथ हैं उन्हें सहारा देना बड़ी खुशी से।
तुच्छ न समझो कभी किसी को,रखना स्नेह सभी से॥
गिरे हुए हैं उन्हें उठाओ, यही मार्ग अच्छा है॥

उस प्रभु के ही सब बालक, सब हैं उसके प्यारे।
अहंकार से बने हुए हैं, हम सब न्यारे न्यारे॥

हिन्दू, मुस्लिम, जैन, पारसी, बौद्ध, सिक्ख, ईसाई।
सब भारत माता के जाये, सब हैं भाई- भाई॥
फिर भाई- भाई आपस में, लड़ना क्या अच्छा है॥

जहाँ निराशा उदासीनता, का ही गहन अँधेरा।
आलम जड़ता निष्क्रियता का, जहाँ पड़ा हो घेरा॥

वहाँ ज्ञान का दीप जलाकर, नव प्रकाश फैलाओ।
सारा जग आनन्द मग्न हो, ऐसा राग सुनाओ॥
सबको सुख पहुँचाना केवल, यही कर्म अच्छा है॥
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