सागर से भी गहरा वन्दे
सागर से भी गहरा वन्दे, गुरुदेव का प्यार है।
देख लगाकर गोता इसमें, तेरा बेड़ा पार है॥
भवसागर में एक दिन तेरी, जीवन नैया डूबेगी।
खेते- खेते इक दिन तो, पतवार भी तेरी छूटेगी॥
जायेगा उस पार तू कैसे, चारों ओर अंधकार है॥
सौंप दो नैया गुरुदेव को, सबको पार लगा देंगे।
पैर पकड़ ले जाकर के तू, सोया भाग्य जगा देंगे॥
पापी से भी पापी जन को, करते न इन्कार है॥
संत समागम हरि कथा भी, गुरु कृपा से पाओगे।
खुद आयेंगे गोविन्द गिरधर, गुरु का आशीष पाओगे॥
वन्दे बन गुरु कृपा से तेरी, जिन्दगी बेकार है॥
मुक्तक-
जो नित नर सुमिरन करे, सुख अपार वह पाय।
लगन लगे गुरु नाम की, भवसागर तर जाय॥
जब वेद के पद्यबद्ध मंत्रों को गान विद्या से अनुप्राणित किया गया तो ‘सामवेद’ बन गया।