(परिव्राजक एवं त्रैमासिक सत्र विदाई गीत)
सुनो परावाणी गुरुवर की
सुनो परावाणी गुरुवर की, हे! ‘परिव्राजक’ भाई।
- ओ ‘त्रैमासिक’ भाई॥
‘गौरव’ टिका मिशन का तुम पर, लेना नहीं जँभाई॥
उपवन जिसे लगाया गुरु ने, शक्तिपीठ के खेत में।
- समाज रूपी के खेत में॥
रखना ध्यान बदल न जाये, कहीं वो सूखी रेत में॥
श्रम- सीकर से उसे सींचना, दे अपनी तरुणाई॥
तिलक लगाकर भेज रहीं है, तुम्हें भगवती माता।
करना तुम्हें वही है भाई, जो है उन्हें सुहाता॥
टूटे बन्धन लोभ- मोह के, ऐसे लो अंगड़ाई॥
पथ यह नहीं सुरभित सुमनों का, तुमने जो अपनाया।
करो समर्पण मन- बुद्धि का, गीता ज्ञान बताया॥
बढ़ा हुआ पग लौट पड़े ना, गुरु ने ज्योति जलाई॥
मातु भगवती के सपूत हो, इस गौरव का भान रहे।
कितना है उपकार गुरु का, अपने ऊपर ध्यान रहे॥
आज शरण लो, तुम्हें समझनी है अब पीर पराई॥