हृदय- हृदय को भरे पुलक
हृदय- हृदय को भरे पुलक से, देव रचो कुछ ऐसा गान।
आत्मा- आत्मा झूम उठे फिर, आज रचो कुछ ऐसी तान॥
जीवन के मरुस्थल को दे दो, स्नेह सुधा की निर्मल धार।
मन के मुरझाये मधुबन में, ले आओ तुम पुनः बहार॥
तिनके आशा के जोड़ो, बस जाय फिर से उजड़ा नीड़।
पुल धैर्य का बाँधो, डुबा न पाये तूफानों की भीड़॥
जन- जन में उत्साह भरे वह, दिखे न कोई भी मुख म्लान॥
निशि बीते शंकाओं की, चमके विवेक का नया प्रभात।
भ्रम के बादल छटें दमकने, लगे उषा का स्वर्णिम गात॥
रुढ़िवाद की राख हटे, तो दहकें तथ्यों के अंगार।
करें सत्य,शिव,सुन्दर मिलकर, नव जीवन का नव श्रृंगार॥
मनुज- मनुज निभ्रांत हो सके, बाँटो सबको ऐसा ज्ञान॥
संवेदन का अमृत पिलाओ, कुंठित उर पा जायें प्राण।
बहे गंध उल्लास भरी बन, दो विषाद से सबको त्राण॥
स्वाति बूँद ममता की प्रेम का, खोलो सखे हृदय की सीप।
हो चहूँ ओर प्रकाश प्रेम का, जलता रहे स्नेह का दीप॥
मानस- मानस में जग जाये, औरों की पीड़ा का भान॥