श्रीराम आया है, युग की व्यथा मिटाने को।
जलाई ज्ञान की ज्योति, हमें जगाने को॥
भटक गई है मनुजता, अँधेरी राहों में।
चला है काल निगलने, दूषित विचारों को।।
तपा लिया है निज को, बिखर रही किरणें।
निकल पड़े हैं जो घर- घर अलख जगाने को।।
लुटा रहा वो ज्ञानामृत, बढ़ालो हाथ को बस।
पिया जहर भी वो, शिव तो हमें बचाने को।।