गुरुवर अब थामो पतवार
गुरुवर अब थामो पतवार,
सारी दुनियाँ बीच भँवर में, कौन लगावे पार॥
भवसागर की तेज धार है, और नाव में बहुत भार है।
कैसे नाव बचायें अपनी, पीछे पड़े विकार॥
लोभ मोह का बोझा भारी, काम क्रोध ने टक्कर मारी।
खेते- खेते हार गये हम, डूब रहे मझधार॥
ऐसे में अज्ञान अँधेरा, डाल रहा है अपना घेरा।
कुछ भी देता नहीं दिखाई, करो तुम्हीं उद्धार॥
मिले ज्ञान पतवार तुम्हारी, बच जायेगी नाव हमारी।
ज्ञान मशाल जला दो गुरुवर, तो हो बेड़ा पार॥
नाव बची तो गुण गायेंगे, सबको ये विधि बतलायेंगे।
हमें पार लगते देखेंगे, होंगे सभी सवार॥
यदि गायक के गले में लोच हो और वह उचित मूर्छना, आरोह, अवरोह का विचार कर साम गान करे, तो मंत्रार्थ न जानने पर भी भावों की दिव्य अनुभूति हुए बिना नहीं रहती। -सामवेद (पृ.16)