चलो! गुरु ज्ञान का दीपक
चलो! गुरु ज्ञान का दीपक, हमें घर- घर जलाना है।
अँधेरे से डरें हैं जो, उन्हें हिम्मत बँधाना है॥
अँधेरी रात पा करके, निराशा ने जिन्हें घेरा।
निराशा में जमाना चाहते, पीड़ा पतन डेरा॥
नहीं वे सोच पाते हैं लड़ें कैसे अँधेरे से।
निकल पाते निराशा के, न जब तक क्रुर घेरे से॥
करिश्मा ज्ञान की शुभ ज्योति का उनको बताना है॥
अरे! क्यों हारते हिम्मत, अँधेरा कब सदा रहता।
सुबह की ही प्रतीक्षा में, इसे संसार सह लेता॥
कहीं सूरज निकलने की, सुनिश्चित ही तैयारी है।
सुनो हरदम अँधेरा ही न, किस्मत में तुम्हारी है॥
तिमिर से जूझने की भोर तक, हिम्मत दिखाना है॥
न घबराओ! पतन पीड़ा, पराभव से तनिक भाई।
समय इनका निकट है, अन्त होने की घड़ी आई॥
कि युग ऋषि ने पुनः देवत्व मानव का जगाया है।
दनुजता को मिटाने का, अरे बीड़ा उठाया है॥
निराशा छोड़ दो मन में तुम्हें आशा जगाना है॥
नयायुग आ रहा है, फिर निराशा टिक न पायेगी।
नगर में, गाँव में, घर में, अँधेरी दिख न पायेगी॥
उदय होगा नये दिनमान का पथ जगमगायेगा।
यही दीपक, हमें गुरु ज्ञान, सूरज से मिलायेगा॥
यही है, सूर्य का प्रतिनिधि इसे, साथी बनाना है॥