जब जब भी प्रबुद्ध जन
जब जब भी प्रबुद्ध जन मानस, बुद्धि- भ्रष्ट होता है।
तब तब ही युग गरिमा का, इतिहास नष्ट होता है॥
खड़ी फसल पर पाला पड़ता, फसल नष्ट हो जाती।
बिजली गिरती उतनी धरती, नष्ट भ्रष्ट हो जाती॥
पर इससे सारी फसलों पर, असर न होने पाता।
बिजली का प्रभाव अन्यों के, भवन न ढहने पाता॥
किन्तु बुद्धि पर पाला पड़ता, जब कि प्रबुद्धजनों की।
तब तो पूरी ही मानवता, का अनिष्ट होता है॥
कोई भी हो तंत्रवाद हो, कोई भी सत्ता में।
सबकी ही उन्नति का बीज, निहित बुद्धिमत्ता में॥
बुद्धितन्त्र ही सब तंत्रों पर, हो जाता है हावी।
सबकी ही प्रबुद्ध जन मानस, के हाथों में है चाबी॥
करता है प्रबुद्ध जन मानस, अनुभव सबकी पीड़ा।
संवेदित हो विश्व वेदना, में प्रविष्ट होता है॥
जब प्रबुद्ध जन मानस में से, दूर भ्रांति होती है।
तब प्रबुद्ध जन मानस में, विचार क्रांति होती है॥
तभी क्रांति के अजर अमर, इतिहास लिखे जाते हैं।
युग परिवर्तन के जन जीवन, में उभार आते हैं॥
युग भी बदल जाया करता है, परिवर्तन आ जाता।
जब प्रबुद्ध मानस अनीति पर, कुद्ध रुष्ट होता है॥
मानवता प्रबुद्ध मानस का, आवाहन करती है।
परिवर्तन हित आगे आने, की आशा करती है॥
है प्रबुद्ध मानस के आगे, आने की यह बेला।
अब मानवता से अनीति का, कष्ट न जाता झेला॥
सद्भावों के सद्विचार के, लिए मनुजता तरसी।
अब भी क्या प्रबुद्ध मानस को? नहीं कष्ट होता है॥