जल में थल में जड़- चेतन
जल में थल में जड़ चेतन में, गूँज रही झन्कार।
राम की महिमा अपरम्पार,राम की महिमा अपरम्पार॥
फूलों में प्रतिबिम्ब राम का, कलियों में मुस्कान।
मन मोहक खुशबू से सारे, महक रहे उद्यान॥
सागर की उछाल तरंगें, करती हैं मनुहार॥
सोम सूर्य में तेज राम का, तारे है विद्युतिमान।
चरण कमल में नत मस्तक है, ज्ञान और विज्ञान॥
षट् ऋतुयें बारी- बारी से, मना रही त्यौहार॥
तन हो सुन्दर, मन हो सुन्दर, सुन्दर हृदय विचार।
नर से नारायण बन जाये, बने स्वर्ग संसार॥
मानव प्रतिमा की पूजा हो, होवे जय- जयकार॥