नर तन मिलता कभी कभी
नर तन मिलता कभी कभी रे, पाते इनको कहाँ सभी रे।
नर से नारायण तू बन जा, यह अवसर है अरे अभी रे॥
पुण्य कर्म से पाया यह तन, बहुत कठिन है मानव जीवन।
यह रत्नों की खान मिली है, बिखर न जाये रत्न कहीं रे॥
काम दूसरे के आता है, वह ही मानव कहलाता है।
पर पीड़ा से द्रवित उठे वह मानव की पहचान यही रे॥
नहीं स्वार्थ में डूब बिताये, जग सेवा में इसे लगायें।
लोक और परलोक सधे सब, गुरु ने राह बताई यही रे॥
मुक्तक- कहते हैं सब ग्रंथ हो चाहे गीता या रामायण।
शुभ कर्मों से धीरे- धीरे, नर बनता नारायण॥