पुरुषार्थ की कहानी
(धुन- चलना सिखा दिया है)
पुरुषार्थ की कहानी, इतिहास गा रहा है।
सूरज सुना रहा है, चन्दा बता रहा है॥
राणा प्रताप क्या थे, पुरुषार्थ की कहानी।
गीता सुना रही है, अपनी पुनीत वाणी।
पुरूराज का पराक्रम, फिर याद आ रहा है॥
पीड़ित हुई मनुजता संस्कृति सिसक रही है।
फिर क्यों मनीषियों की, प्रज्ञा हिचक रही है।
पुरूषार्थ के धनी क्यों, दुःख को बुला रहा है॥
उद्योग जब हुए हैं, संभव हुआ तभी कुछ।
जब भी प्रमाद छाया, पाया तभी नहीं कुछ।
भागीरथी परिश्रम, गंगा बहा रहा है॥
‘‘जब कभी संगीत की स्वर लहरियाँ मेरे कानों में गूँजती मुझे ऐसा लगता है कि- मेरी आत्म- चेतना अदृश्य जीवनदायिनी सत्ता से सम्बन्ध हो गई है। मैं शरीर की पीड़ा भूल जाता, भूख प्यास और निद्रा टूट जाती, मन को विश्राम और शरीर को हलकापन मिलता। मैं तभी सोचा करता था कि सृष्टि में संगीत से बढ़कर मानव जाति के लिए और कोई दूसरा वरदान नहीं है।’’
-विश्व के यशस्वी गायन -एनरिको कारूसो