जागरण देखो नयन उघार
जागरण देखो नयन उघार, जागरण देखो नयन उघार॥
हाथ बाँधकर बहे जा रहे, महा ज्वार के साथ।
धार वेग में दिखा न पाता, कोई अपने हाथ॥
तेज थपेड़ों से टूटे मन, भूले होश हवाश।
बीच भँवर में गोते खाते, डूब रहे मझधार॥
बीन बटोर रहे झोली में, काँच किरच दिन रात।
खिसक रही जाने अनजाने, साँसों की सौगात॥
रोज रोज सहते हैं, शाप ताप आघात।
नहीं पाते खाते हैं, महाकाल की मार॥
कामधेनु बाँधे आँगन में, दाता बने भिखारी।
श्री लक्ष्मी के पूत लजाते, इन्द्राणी महतारी॥
सिंहासन सूना दिखता है, सूनी सिंह सवारी।
दुर्गति झेल रहा है देखो, दुर्गा का परिवार॥
विश्वामित्र वशिष्ठ, व्यास के घर में ज्ञान दुःखारी।
ऋतम्भरा प्रज्ञा मेधा के, कहाँ छुपे अधिकारी॥
यज्ञ याज्ञ की आग बुझी, दहकी अणु की चिनगारी।
सामगान क्रन्दन करता है, तुमको रहा पुकार॥
अमृत उफन रहा है घट से, साधक प्राण सम्हालो।
त्याग तपस्या के हाथों से, कल्प लता को पालो॥
रँभा रही है कामधेनु की, धार कंठ में डालो।
सत्यवान बनके पाओगे, सावित्री का प्यार॥